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गोडसे ने गांधी को गोली क्‍यों मारा

December 23, 2014
by डॉ संतोष राय
गोडसे ने गांधी को गोली क्‍यों मारा
8 Comments

डॉ0 संतोष राय

देशभक्‍तों को गद्दार मत कहो

भारत माता के गगनांचल रूपी आंचल में ऐसे-ऐसे नक्षत्र उद्दीप्‍त हुये हैं, जो न केवल भारत भूमि को बल्कि संपूर्ण विश्‍व भू मंडल को अपने प्रकाश पुंजों से आलोकित किया है। ऐसे ही एक महान नक्षत्र का उदय भारत की पावन भूमि पर हुआ जो संपूर्ण जगत  में नाथूराम  गोडसे के नाम से विख्‍यात हुआ। वीर हुतात्‍मा नाथूराम गोडसे का जन्म १९ मई १९१० को भारत के महाराष्ट्र राज्य में पुणे के निकट बारामती नमक स्थल  पर चित्तपावन मराठी ब्रह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता विनायक वामनराव गोडसे पोस्ट आफिस में काम करते थे और माता लक्ष्मी गोडसे सिर्फ एक गृहणी थीं।नाथूराम गोडसे के बचपन का नाम रामचन्द्र था। नाथूराम के जन्म से पूर्व  इनके माता-पिता की सन्तानों में तीन पुत्रों की बहुत कम समय में ही मृत्यु हो गयी थी केवल एक पुत्री ही जीवित बची थी, नाथूराम के माता-पिता बहुत दु:खी थे। इनके माता-पिता ने ईश्वर से विनती की यदि अब कोई पुत्र हुआ तो उसका पालन-पोषण लड़की की तरह करेंगे।  इसी के चलते  इनकी नाक बचपन में ही छेद दी और नाम भी बदल दिया।

वीर हुतात्‍मा नाथूराम एक ख्‍यातिलब्‍ध  पत्रकार थे जिनके अखबार का नाम दैनिक अग्रणी था। ये सत्‍य-सनातनी,राष्ट्रवादी और भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। इनका सबसे अधिक चर्चित कार्य मोहनदास करमचन्द गान्धी उपाख्य महात्मा गान्धी का वध था क्योंकि भारत के विभाजन और उस समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा में लाखों हिन्दुओं की हत्या के लिये लोगबाग गान्धी को ही उत्तरदायी मानते थे। यद्यपि उन्होंने इससे पूर्व भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष भी किया था और कुछ समय तक अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े रहे, परन्तु बाद में वे अखिल भारतीय हिन्दू महासभा में चले गये।

गोडसे का ब्राहमण परिवार में जन्म होने के कारण इनकी बचपण से ही धार्मिक कार्यों में गहरी रुचि थी। इनके छोटे भाई गोपाल गोडसे के अनुसार ये बचपन में ध्यानावस्था में ऐसे-ऐसे विचित्र श्लोक बोलते थे जो इन्होने कभी भी पढ़े ही नहीं थे। ध्यानावस्था में ये अपने परिवारवालों और उनकी कुलदेवी के मध्य एक सूत्र का कार्य किया करते थे परन्तु यह सब १६ वर्ष तक की आयु तक आते-आते स्वत: समाप्त हो गया।

यद्यपि इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पुणे में हुई थी परन्तु भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के आन्दोलन से प्रभावित होकर हाईस्कूल के बीच में ही अपनी पढाई-लिखाई छोड़ दी तथा उसके बाद कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली। धार्मिक पुस्तकों में गहरी रुचि होने के कारण रामायण, महाभारत, गीता, पुराणों के अतिरिक्त स्वामी विवेकानन्द,स्वामी दयानन्द , बाल गंगाधर तिलक तथा महात्मा गान्धी के साहित्य का इन्होंने गहरा अध्ययन किया था।

नाथूराम अपने राजनैतिक जीवन के प्रारम्भिक दिनों में नाथूराम अखिल भारतीय कांग्रेस से जुड़े रहे थे परन्तु बाद में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गये। अन्त में १९३० में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी छोड़ दिया और अखिल भारतीय हिन्दू महासभा में चले गये। उन्होंने दैनिक अग्रणी तथा हिन्दू राष्ट्र नामक दो समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया था। वे मुहम्मद अली जिन्ना की अलगाववादी विचार-धारा का हमेंशा विरोध करते थे। प्रारम्भ में तो उन्होंने मोहनदास करमचंद गांधी के कार्यक्रमों का समर्थन किया परन्तु बाद में गान्धी के द्वारा लगातार और बार-बार हिन्दुओं के विरुद्ध भेदभाव पूर्ण नीति अपनाये जाने तथा मुस्लिम तुष्टीकरण किये जाने के कारण वे गान्धी के प्रचंड  विरोधी हो गये, बाद में गांधी द्वारा हिन्‍दू विरोधी नीतियों के कारण नाथूराम  जी को गांधी वध को विवश होना पड़ा।

हैदराबाद  का ऐतिहासिक आन्दोलन

१९४० में हैदराबाद के तत्कालीन शासक निजाम ने उसके राज्य में रहने वाले हिन्दुओं पर बलात जजिया कर लगाने का निर्णय लिया जिसका हिन्दू महासभा ने विरोध करने का निर्णय लिया। हिन्दू महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर के आदेश पर हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं का पहला जत्था नाथूराम गोडसे के नेतृत्व में हैदराबाद गया। हैदराबाद के निजाम ने इन सभी को बन्दी बना लिया और कारावास में कठोर दण्ड दिये परन्तु बाद में हारकर उसने अपना निर्णय वापस ले लिया।

भारत-विभाजन मन को उद्वेलित किया

१९४७ में भारत का विभाजन और विभाजन के समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा ने नाथूराम को अत्यन्त उद्वेलित कर दिया। तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए बीसवीं सदी की उस सबसे बडी त्रासदी के लिये मोहनदास करमचन्द गान्धी ही सर्वाधिक उत्तरदायी समझ में आये।

गान्धी-वध को विवश क्‍यों हुये

विभाजन के समय हुए निर्णय के अनुसार भारत द्वारा पकिस्तान को ७५ करोड़ रुपये देने थे, जिसमें से २० करोड़ दिए जा चुके थे। उसी समय पकिस्तान ने भारत के कश्मीर प्रान्त पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्रीपंडित जवाहर लाल नेहरू और गृहमन्त्री सरदार बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में भारत सरकार ने पकिस्तान को ५५ करोड़ रुपये न देने का निर्णय किया, परन्तु भारत सरकार के इस निर्णय के विरुद्ध गान्धी अनशन पर बैठ गये। गान्धी के इस निर्णय से क्षुब्ध नाथूराम गोडसे और उनके कुछ साथियों ने गान्धी का वध करने का निर्णय लिया।

बम फेंकने का प्रयास विफल

गांधी की हिन्‍दू विरोधी अनशन ने इन राष्‍ट्रवादियों को पूरी तरह विचलित कर दिया था। विभाजन के समय लाखों हिन्‍दुओं का कत्‍ल, पाकिस्‍तान से आये हुये रेलों में हिन्‍दुओं की लाशें, लाखों हिन्‍दू महिलाओं के साथ बलात्‍कार  इनके मन-मष्तिष्‍क को पूरी तरह झकझोर दिया था। गान्धी के अनशन से दुखी गोडसे तथा उनके कुछ मित्रों द्वारा गान्धी-वध की योजनानुसार नई दिल्ली के बिरला हाउस पहुँचकर २० जनवरी १९४८ को मदनलाल पाहवा ने गान्धी की प्रार्थना-सभा में बम फेका। योजना के अनुसार बम विस्फोट से उत्पन्न अफरा-तफरी के समय ही गान्धी को मारना था परन्तु उस समय उनकी पिस्तौल ही जाम हो गयी वह एकदम न चल सकी। इस कारण नाथूराम गोडसे और उनके बाकी साथी वहाँ से भागकर पुणे वापस चले गये जबकि मदनलाल पाहवा को भीड़ ने पकड़ कर पुलिस को सुपुर्द कर दिया।

नाथूराम गोडसे गान्धी को मारने के लिये पुणे से दिल्ली वापस आये और वहाँ पर पकिस्तान से आये हुए हिन्दू तथा सिख शरणार्थियों के शिविरों में घूम रहे थे। उसी दौरान उनको एक शरणार्थी मिला, जिससे उन्होंने एक इतालवी कम्पनी की बैराटा पिस्तौल खरीदी। नाथूराम गोडसे ने अवैध शास्त्र रखने का अपराध न्यायालय में स्वीकार भी किया था। उसी शरणार्थी शिविर में उन्होंने अपना एक छाया-चित्र (फोटो) खिंचवाया और उस चित्र को दो पत्रों के साथ अपने सहयोगी नारायण आप्टे को पुणे भेज दिया।

३० जनवरी १९४८ को नाथूराम गोडसे दिल्ली के बिड़ला भवन में प्रार्थना-सभा के समय से ४० मिनट पहले पहुँच गये। जैसे ही गान्धी प्रार्थना-सभा के लिये परिसर में दाखिल हुए, नाथूराम ने पहले उन्हें हाथ जोडकर प्रणाम किया उसके बाद बिना कोई बिलम्ब किये अपनी पिस्तौल से तीन गोलियाँ मार कर गान्धी का अन्त कर दिया। गोडसे ने उसके बाद भागने का कोई प्रयास नहीं किया।

नाथूराम गोडसे पर मोहनदास करमचन्द गान्धी की हत्या के लिये अभियोग पंजाब उच्च न्यायालय में चलाया गया था। इसके अतिरिक्त उन पर १७ अन्य अभियोग भी चलाये गये। किन्तु इतिहासकारों के मतानुसार सत्ता में बैठे लोग भी गान्धी जी की हत्या के लिये उतने ही जिम्मेवार थे जितने कि नाथूराम गोडसे या उनके अन्य साथी। इस दृष्टि से यदि विचार किया जाये तो मदनलाल पाहवा को इस बात के लिये पुरस्कृत किया जाना चाहिये था ना कि दण्डित क्योंकि उसने तो हत्या-काण्ड से दस दिन पूर्व उसी स्थान पर बम फोडकर सरकार को सचेत किया था कि गान्धी, जिन्हें बडी शृद्धा से नेहरू जी बापू कहते थे, अब सुरक्षित नहीं; उन्हें कोई भी प्रार्थना सभा में जाकर शूट कर सकता है।

नेहरू व पटेल भी बराबर के दोषी थे। क्‍योंकि वे गांधी को पूरी तरह सुरक्षा नही दिये। गांधी की नीतियों से सरदार पटेल भी बहुत दु:खी थे। क्या यह दायित्व जवाहर लाल नेहरू जो देश के प्रधान मन्त्री थे, अथवा सरदार पटेल जो गृह मन्त्री थे, उनका नहीं था? आखिर २० जनवरी १९४८ की पाहवा द्वारा महात्मा गाँधी की प्रार्थना-सभा में बम-विस्फोट के ठीक १० दिन बाद उसी प्रार्थना सभा में उसी समूह के एक सदस्य नाथूराम गोडसे ने गान्धी के सीने में ३ गोलियाँ उतार कर उन्हें सदा के लिये समाप्त कर दिया। यह सवाल बहुत पहले इन्दिरा गान्धी की मृत्यु के पश्चात सन १९८४ में ही उठाया था जो आज तक अनुत्तरित है।

गोडसे के वक्‍तव्‍य को भारत सरकार ने प्रतिबंधित  क्‍यों किया

गान्धी-वध के मुकद्दमें के दौरान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति माँगी थी और उसे यह अनुमति मिली थी। नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया था। इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गान्धी-वध के सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई लड़ी और उसके फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबन्ध को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के प्रकाशन की अनुमति दी।

नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के समक्ष गान्धी-वध के जो १५० कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं: –

ये क्रमांकित सूची इस प्रकार हैं:

  1. जब २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर बिना सोचे आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
  2. जब पाकिस्तानी मुसलमानों द्वारा हिन्‍दुओं को भारी मात्रा में काटा जाने लगा तो वहां से आये विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
  3. १४-१५ जून १९४७ को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुँच कर जबरन प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। क्‍या यह गांधी के द्विपक्षीय घटिया राजनीति को प्रदर्शित नही करती।
  4. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त देशवासियों में आक्रोश की ज्‍वाला फूट रही थी, वे चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाये। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से स्पष्ठ मना कर दिया। क्‍या गांधी ने जलिया वाले बाग में हुये नरसंहार के लोगों की आत्‍मा के साथ अन्‍याय नही किया।
  5. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश रो रहा था व गान्धी की ओर कातर भरी नजरों से देख रहा था, कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु के पंजें से बचायें, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया।
  6. ६ मई १९४६ को समाजवादी कार्यकर्ताओं को दिये गये अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
  7. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१ में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग १५०० हिन्दू मारे गये व २००० से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
  8. १९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये अहितकारी घोषित किया।
  9. गान्धी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
  10. गान्धी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दू बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
  11. यह गान्धी ही थे जिन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
  12. कांग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिये बनी समिति (१९३१) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गान्धी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
  13. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पद त्याग दिया।
  14. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
  15. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे; ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और १३ जनवरी १९४८ को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

गोडसे व आप्‍टे को फाँसी

नाथूराम गोडसे को सह-अभियुक्त नारायण आप्टे के साथ १५ नवम्बर १९४९ को पंजाब की अम्बाला जेल में फाँसी पर लटका कर बहुत ही क्रूरतम तरीके से मार दिया गया। नाथूराम फांसी से  पूर्व अपने अन्तिम आत्‍मोद्गार कुछ इस प्रकार व्‍यक्‍त किया था:

“यदि अपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना कोई पाप है तो मैंने वह पाप किया है और यदि यह पुण्य है तो उसके द्वारा अर्जित पुण्य पद पर मैं अपना नम्र अधिकार व्यक्त करता हूँ”

– नाथूराम विनायक गोडसे

मित्रों यदि 30 जनवरी को  गांधी वध रूक जाता तो 3 फरवरी 1948 को एक विभाजन गांधी द्वारा और सुनिश्चित हो जाता। जिन्‍ना की मांग थी कि पश्चिमी पाकिस्‍तान से पूर्वी पाकिस्‍तान जाने में बहुत समय लगता है, कोई सामान्‍य व्‍यक्ति को यदि जाना हो तो वो हवाई जहाज से जाने में समय के साथ-साथ खर्च भी बहुत लगता है। इसलिये जिन्‍ना की मांग थी कि हमें भारत के बिलकुल बीच से एक गलियारा बनाके दे दिया जाये- 1-जो लाहौर से ढाका जाता हो 2- दिल्‍ली के एकदम पास होकर जाता हो 3-जिसकी चौड़ायी कम से कम 10 मील यानी 16 किलो मीटर हो 4- 10 मील के दोनों ओर सिर्फ मुस्लिम बस्तियां बनेगी। सोचिये गलियारे के दोनों तरफ सिर्फ मुस्लिम बस्तियां क्‍या जिन्‍ना के स्‍वस्‍थ मा‍नसिकता का परिचायक था। सच तो यह है कि मोहनदास गांधी होते तो देश का एक और विभाजन सुनिश्चित था।

अब आप स्‍वयं निर्णय करें और बतायें कि नाथूराम ने मोहन दास गांधी को देश हित में मारा था या द्वेष में? नाथूराम  गोडसे  देशभक्‍त थे या गद्दार।

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8 Comments
  1. Girishkumar B. Kataria February 28, 2015 at 7:41 pm Reply

    Dr. Rai ka vistrut lekh padha. Pata nahi Dr. Rai P.hd. hai ya allopathy ya homeopathy ke doctor hai. Jo picture unhone prastut kiya hai usme Gandhiji ne anek galtiya kari thi isliye Nathurram Godse ne Gandhiji ko goli mar di. Dr. saab ye justify kar rahe he ki Nathu Ram Godse ek hatyara nahi tha lekin veer or surveer tha.

    Khuni, khuni hota hai. Chahe uddesh kitna bhi spast ho lekin khuni ko veer kahna karodo bhartiyon ke aadarsh ke saath khilwad karna . Karodo logo ne jinko MAHATMA ka birud diya tha who kyon unhi? Aur Gandhiji ko Mahatma Samaj ne me etraj ho to uske vichar usko mubark. Koi dust ne likha he Gandhiji naked sote the. Are bhai likhne wale kya tune Brahmacharya ke bare me padha hai? Kabhi Tune palan kiya hai? Tuze pata bhi hai ke Gandhiji ne apne Youvan kal me yani lagbhag 36 years ki umrame Brahmacharya vrat liya tha. Tu ek bar ek saal ke liye voh vrat leke to dekh phir muze kehna kya badal hota hai teri soch me, acharan me. Kher, Jise log (gine choone) Godse ko veer kehte hai unhe na to sastro ka gyan hai na unme vivek hai. Khooni to khooni hota hai, usko hatyara kehte hai. Godse Sanatani hota to ye krutya kabhi na karta. Iska matlab use Hindu dharm ka bhi gyan nahi tha. Godsse Bichara Mansik Bimar, aswasth, dharmand, vivekhin, buddhi hin vyaktitava vala admi tha. Hindu dharm ka mukhya stambh kya hai doctor saahab? Kya godse ko pata tha? Jis Rashtrapita ne hame azadi dilwai, apni vakalat chhodkar bhikari (vastav me tyagi ) jaisa jeevan jeene laga, jisne Rashtra ke liye tan, man or dhan fana kiya use ye puraskar? Gandhiji apna ghar na sambhal paye rashtra ke liye. Agar kranti se azadi milti hoti to 1857 ki kranti ke baad kitna angrejo ki hatya ki tab darkar angrej ko bharat chhod jana chahiye tha. Dr. Saab aap jante hoge ke Jab jab yudhdh hota hai tab dono deshke pratinidhi yudhdha ke baad mantra karne ek table par baith jate hai. Is ka matlab ye hua ki Shanti or Anhinsa jeevan ka Avashya ang hai. Sayyad koi inkar kare usse muze koi padi nahi.
    Goli se sab kuch prapt nahi hota hai jo shanti or ahinsha ke dwara prapt hota hai. Gandhiji ki Atma katha unbiously koi padhe tab use Gandhi ke bare ma samjhega. Ek tarfa (one sided ) baat karna bilkul avyvharik hai. Gandhiji ko Muslimo ke, Pichhdi jati ke paygambar kahte hai. Jo upper caste ke Dharmand log the unhe gandhiji ki ye baat manjoor nahi thi. Isiliye Godse ke purva kai baar attach hue.
    Tab to Bharat ya Hindustan swatantra nahi hua tha. Muslimo ko Pakistan nahi diya tha. Mohammed Ali Zina Kaun the? Kyon wo muslim bane? Kaun jimmedar he unko muslim banane me? Kaun jimmedar the unhe kattar Muslim banane me. Main gujaris karunga ke thodi taklif lo, Itihas padho. Phir apna Abhipray do. Ek khooni, mansik bimar, dharmandh, vivekhin aur koi ek sangathan ka kirayaka tatoo Gdse Karodo bHaratvashio ke liye ek Hatyara, Doost or Buddhihin vyakti se kuch nahi tha. Kitna bhi justify karlo. Godse ko kisiko punishment dene ka adhikar nahi tha. Us samai me bhi Bharat me Court system thi. Court ke darwaje thock sakta tha. Upni baat rakh sakta tha. Lekin usne woh rasta choona jo ki insaniyat ke naam par dhabba hai. Ab jyada likhne se kya laabh. Meri Bhavna pragat ki hai. Kisi ho hurt karna uddesh nahi hai. Astu. Girish K.

    • वीरेंद्र तिवारी May 31, 2015 at 6:27 am Reply

      जो इंसान अपनी मातृभाषा हिंदी की जगह अंग्रेजी में हिंदी मे लिखता हो वो हिंदुस्तान की जगह पाक व अंग्रेजों के बारे में ही सोचेगा सच तो ये है की गंदी नेरू दोनो गद्दारों के बाप हैं वरना ए समझौता स्वीकार नहीं करते की १- भारतीय संविधान की व्याख्या अंग्रेजी शासन में बनाये कानून १९३५ के आधार पर हो।२- पाकिस्तान-भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हो। ३-प्रथम भारतीय जार्ज राजगोपालचारी शपथ संविधान की बजाय पंचम जार्ज की व इनके उत्तराधिकारीयों की ले।
      और इसका जवाब हो तो मैं अगले ३०० कारण बताउं जिनका जवाब गंदी के पास भी नही है और जो पूरी तरह गंदी को देशद्रोही करार देंगें।
      वैसे मैं कानूनी नहीं हूँ पर देश का गद्दार और देश भक्त में अंतर समझता हूं वो वीर थे क्योंकि गोली मारने के बाद भी भागने की कोशिश नहीं की। माफ़ कीजीये मै एक फार्मासिस्ट हूँ और संयोग से मैं मेंटल डिसार्डर से पीड़ित नहीं हूं यदि आपको विस्तृत अध्ययन के बाद भी समझ न आये तो लिवोडोपा ड्रग डाक्टर साहब से लिखवा लीजिए क्योंकि विना प्रिस्कृप्सन नही दे सकता।आप हमारी वेबसाइट http://www.dostsabha.com or http://www.devwani.org पर मिल सकते हो ।।वंदेमातरम्।।

    • yuvraj singh August 14, 2015 at 4:07 pm Reply

      Girishkumar B. Kataria -G aapko btana chahunga ki khun to Rani laxmi bhai, mangal pandey, chandra shekar azad or v na jane kitne desbhakto ne v kiya tha. to kya yadi aapki drstikon se un sabhi ne caroro loga ke saat kilwar kiya.

      Gandi ka sathya- yadi sitaramaya congraes adhivesan ka election har jaiyega to rajniti chor dunga
      lakin sitaramaya election har gaya or neta-ij subash chandra boss jite
      to kya gandi ne rajniti chor diya ??

      Gandi aahinsawadi- 2nd world war me hindustan ke sipahi british ke traf se lade
      kiska faisla tha ??

      Gandi ke wachan- shivaji, maharana pratap aur guru Govind singh -Ji path bharast neta
      aapki nazro me satya hai ??

      Itihas gawah hai aahinsa se jit hasil nahi hoti yadi hoti to:
      Bhawan RAM galat the,
      Bhawan Shri KRISHAN galat the
      Pando galat tha
      jise itash mahan sikndra kahte hai wo galat tha
      Aacharya Chanakya galate the
      Samrat Chandragupt galat tha

      Kon-kon galat the kripya batane ka kast kare

      • Ashok Arya January 29, 2016 at 7:27 pm Reply

        महात्मा गाँधी जब भारत आए तब उन्होंने देखा की चंपारण के किसानो की हालत अंग्रेजो ने बहुत ही दयनीय कर दी थी | अंग्रेज चंपारण के किसानो से जबरदस्ती नील की खेती करवाते थे और फिर खुद ही सस्ते दामो में खरीद लेते थे | गाँधी जी ने अंग्रेजो के इस कृत्य के प्रति आवाज उठाई और चंपारण के किसानो को न्याय दिलवाया | गाँधी जी के आने से पहले देश में आजादी को लेकर लोग इतने जागरूक नहीं थे | गाँधी जी ने ही हिन्दू मुस्लिम के फुट को मिटाकर एक मार्ग आजादी के मार्ग की और मोड़ा |
        माना की उनके कुछ निर्णय गलत थे, पर किसके नहीं होते हम इन्सान हे हम हर वक्त सही नहीं हो सकते |
        चलो एक बार मान लिया की नाथूराम गोडसे जी ने जो किया वो सही किया, पर इसका मतलब यह नहीं की हम महात्मा गांधी के त्याग उनके किये कार्य तथा उनके द्वारा उठाए गए कष्टों को भूल जाये |

    • सूरज गौड़ January 29, 2016 at 12:52 pm Reply

      हत्या और वध में फर्क होता है । तुम्हारे सोचने के हिसाब से श्री राम , श्री कृष्ण , महाराणा प्रताप , शिवाजी , बाजीराव सब के सब खुनी थे ? जब तुम पर कोई हमला करेगा तो तुम क्या उसकी आरती करोगे या अपना बचाव ?

    • Rajeev Kumar March 31, 2016 at 8:18 am Reply

      वध और हत्या में अंतर होता है। देश हित में जो किया जाता है वो वध होता है। गोडसे नें गांधी वध किया था हत्या नहीं। जैसे भगवान राम नें रावण का वध किया था हत्या नहीं।

  2. सतीश वर्मा May 4, 2015 at 2:54 pm Reply

    गांधी गद्दार था नाथू राम गोडसे अमर रहे

  3. Pankaj binjhade January 12, 2017 at 9:41 am Reply

    Are gandhi ko mahatma bola kisne Bhai hum bhi bhartiya hai hame to aisa ni lagta

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